bhajans

                              झूठा है यह जगत निगोड़ा |
रिश्ते नातों की गाडी को, चला रहा माया का घोडा ||
बैठा है तू इस गाडी में, क्यों नहीं इसको छोड़ा |
क्या छोड़ेगा इसको तू जब,बन जाएगा फोड़ा ||
कृष्ण नाम का आश्रय ले ले, अधिक  नहीं तो थोडा |
'व्योम्कृष्ण' जग से रिश्ता अब,हमने ही खुद छोड़ा ||
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                             नाथ तुम मेरी और निहारो |
दीन दयाल  प्रभु तुम हो,मम दीन दशा निस्तारो  ||
तुम ही अंतिम सत्य हो जग के,मायामय जग सारो |
कृपा द्रष्टि  टुक हेरो मो पर,मेरो अंतर्मन कारो ||
एक ही आसरो है या जग में,श्याम मुरलिया वारो  |
'व्योम' कृष्ण या भव सागर ते,हमको पार उतारो ||
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बंदौ द्वारिकेश द्वै बेर,तीन ताप हारी,चारि बेर बंदौ कर चक्र के धरिया को |
पांडव सखा को पांच बेर षट बेर श्याम,सात बेर बंदौ सात बैल के नथिया को ||
आठ पटरानी पति आठ बेर बंदौ,नौ बेर बंदौ नवनीत के चुरैया को |
वंदन करत दस बेर दस रूपधारी,बेर-बेर बंदौ बाबा नन्द के कन्हैया को ||
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एक बेर आदि ब्रह्म अच्युत अविनाशी की,द्वै बेर दानव दलैया जन रखैया की |
तीन बेर बोलो जय वामन त्रिविक्रम की,चारि बेर शंख,चक्र,पद्म ,गद धरैया की ||
पाँचें पुरुषोत्तम,छठें क्षिति भक्ष सातें श्याम,आठें अवधेश,नौवें नन्द के कन्हैया की |
दश बेर दश रूप धारी श्री बिहारी जू की,बेर-बेर बोलो जय बांसुरी बजैया की ||
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धर्म सदग्रंथ डूब जाते नशि जाते भक्त,जो ये जग जन्म नहिं होतो हरी प्यारे को |
रस की फुलवारी गिरिधारी बिना सूख जाती,ऊक़ जाती यमुना न गहती किनारे को ||
श्याम सुखधाम ने द्रडाय कें पड़ायो प्रेम,रसमय बनायो ब्रज मेटी तम खरे को |
तिहारो कहा चोर्यो ब्रजरानी क्यों अनीत कथों,चोर नाम धारयो तीन लोक रखवारे को ||
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कठिन कराल कलिकाल की चडाई शीश,तेरौ नहिं कोई देख-देख रे तू पलक खोल |
दारा परदारा परिवार हित पाप करे,हीरा सौ जनम गयौ विषयन में डोल डोल ||
व्योम द्विज हरी सौं हितू नहिं तीनौ लोक,बिन मांगे नाम,कुल,नर तन दियो अमोल |
जगत असर अंधियार निराधार माँहि,एरे मन प्रेम से तू हरी बोल हरी बोल ||
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मांटी की मडैया में महल बन्यौ माया कौ,कई दिन रहैगौ यः अंत डाही जायेगौ |
जाएगी न संग सूर साहिबी सजन बंधू,तरुवर की छांह विभव थिर न थिरायेगौ ||
बडेगौ बुड़ापौ ज्यों,वर्षा की घास,स्वांस रुकि-रुकि कें आवै तब व्यंजन को खावैगौ |
माया लै डूबे तोहि तृष्णा नदी में व्योम,माला बिनु मूड तोहि पार को लगावैगौ ||
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कानन कुंडल मोर पखा सिर,वैजयंती माल गले में सोहै |
बारह भुज कौ रूप अनूपम,भक्त जनन के मन को मोहै ||
परम मनोहर छवि दरश कर,हर कोई पूछै ये सांवरो को है |
जो कोई जाने सो देहे बताय,या गरुड़ गोविन्द सौ रावरो को है ||
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जब ते छवि तेरी निहारि लई,तब ते चित है कछु ऐसी बसाई |
तेरे बारह भुजा के स्वरूप की छवि,मेरे मन मंदिर में गयी है समाई ||
खोयौ रहूँ तेरे ध्यान निरंतर,मोहि और न आवत कछु है सुहाई |
अब तेरौ ही है सब भाँति ये 'व्योम',तू चाहे मिटा या चाहे बनाई ||